15 जून डोमा परिसंघ राष्ट्रीय सम्मेलन संदेश



साथियों, देश स्तर पर दो विचारधारा की लड़ाई पहली बार आमने-सामने राजनैतिक स्तर पर छिड़ गई है ।पहले भी ऐसे प्रयास होते रहे हैं लेकिन छोटे स्तर पर। सामाजिक न्याय की लड़ाई धर्मनिरपेक्षता, न्याय, आरक्षण, हिस्सेदारी,धार्मिक स्वतंत्रता, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, आम आदमी का अधिकार सभी को समाहित करता है। लड़ाई जब राजनीतिक स्तर पर लड़ी जा रही हो तो सामाजिक स्तर पर दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज और आदिवासी को और तेज कर देना चाहिए।अकेले राजनैतिक दल और नेता मनुवाद को नहीं रोक पायेंगे। हमसे ज़्यादा मनुवादी समझते हैं, आरएसएस एक सामाजिक संगठन है और उसी के कारण सत्ता पर मनुवादियों का कब्जा है। क्या हम ऐसा नहीं कर सकते ? हमारे लोग ही उनके विचार, कर्मकांड, पाखंड में फंसे हैं या निष्क्रिय होकर उन्हीं का साथ दे रहे हैं। 

दलित,ओबीसी, माइनॉर्टीज़ और आदिवासी परिसंघ (डोमा) की राष्ट्रीय चिंतन बैठक 15 जून 2025 (रविवार) को ऑडोटोरियम, एन.डी.एम.सी. कन्वेंशन सेंटर, जंतर-मंतर के पास, नई दिल्ली में सुबह 10 बजे से निश्चित की गयी है । बाहर से संगठन नाम से बहुजन दिखे और अंदर से जातिवाद और धार्मिक संकीर्णता नहीं चलेगा।  अतः चारों समुदायों की भागीदारी होना भी जरूरी है । जो साथी पुराने हैं, वे अन्य जाति और धर्म के लोगों के साथ शामिल होंगे तो चिंतन बैठक  की सफलता होगी। एक विशेष समुदाय जैसे- ओबीसी बड़ी आबादी वाला होकर भी मनुवाद से अकेले नहीं लड़ सकता। बहुजन एकता ही इस महा आपत्ति का हल है । 

इस राष्ट्रीय चिंतन बैठक में आने वाले साथी अपना और जो साथ आयेंगे उनका भी नाम और नंबर कार्यालय सचिव मुकेश सैनी ‪(+91 94150 37180‬ ) और गीतांजलि बरुवा ‪(+91 70034 71457‬) को सूचित करगें तो अच्छा रहेगा । उसी के अनुसार सीटिंग और खाने की व्यवस्था करने में सुविधा होगी। 

आपका,

(डॉ. उदित राज), पूर्व सांसद , 

राष्ट्रीय चेयरमैन, डोमा परिसंघ

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साथियों , जिन दलित, ओबीसी और आदिवासी  को नौकरी, राजनीतिक प्रतिनिधित्व या कोई अन्य लाभ मिल जाता है तो इनमे बहुत लोग सोचते हैं कि किस्मत में जो लिखा था वो मिला । किस्मत या भाग्य के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं । हज़ारों- लाखों खर्च के लिए तैयार रहते हैं और घर छोड़कर तीरथ यात्रा पर भाग्य या किस्मत ठीक करने के लिए दिनों बाहर चले जाते हैं । इसके लिए ग़रीब से ग़रीब बहाना नहीं बनाता और चाहे रेल का टिकट न मिले या बच्चों की परीक्षा चल रही हो, घर में बीमारी है , काम से छुट्टी न मिले , खेती करने का समय हो और धंधे का नुकसान ही क्यों न हो । 

हजारों वर्ष से किस्मत कहाँ थी? पूना पैक्ट से आरक्षण मिला और जब संविधान बना तो बहुत सारे अधिकार मिले, मंडल कमीशन के पहले पिछड़ों को क्यों नहीं शिक्षा और नौकरी में हिस्सेदारी मिली ? 

15 जून 25 , रविवार को एन डी एमसी ऑडिटोरियम,(जंतर मंतर के पास) नई दिल्ली में दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज और आदिवासी का एक दिन का चिंतन हैं । इसमें शामिल होंगे तो जरूर अधिकार और सम्मान मिलेगा वरना हालात पुराने जमाने जैसी होने जा रही है । शासन और प्रशासन से बाहर हो जाएँगे और क़िस्मत तब साथ न देगी ।एक बार व्यवस्था से बाहर हुए तो सैकड़ो साल तक वापिसी न होगी । 

अगर मेरी बात सही लगे तो 15 जून के सम्मेलन भाग लेंगे । 

आपका 

उदित राज